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बाजे पायलियाँ के घुँघरू

कन्हैयालाल मिश्र

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :228
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 422
आईएसबीएन :81-263-0204-6

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सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की रचना बाजे पायलियाँ के घुँघरू।

उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में

मैं गाँधी-जवाहरलाल-सुभाष की जिस पीढ़ी में जन्मा, पला, बड़ा हुआ और जिया, वह भारत की स्वतन्त्रता के सिपाहियों की पीढ़ी थी।

इस पीढ़ी की जवानी, लाठी चार्जी की धमाधम, गोलीकाण्डों की धायँ-धायँ और हथकड़ी-बेड़ियों की छनाछन में बीती। इसके बाद की पीढ़ी, जिसमें मेरा बुढ़ापा बीत रहा है, राष्ट्र के नवनिर्माताओं की पीढ़ी है और उनका कार्य है देश की भावी पीढ़ियों के लिए सुख-साधन सँजोना।

क्या ये दो भिन्न कार्य हैं?

ना, मैं नहीं मानता यह। ये दोनों कार्य एक ही जीवन की परिपूर्णता के तन्त्र-मन्त्र हैं, पर मैं मानता हूँ कि सांसारिक वैभव की परिपूर्णता होते भी जीवन की परिपूर्णता अपूर्ण है, यदि मानसिक परिपूर्णता न हो।

मेरा विश्वास है कि उग-उभरती पीढ़ियों की मानसिक पूर्णता के लिए ये लेख अमोघ रसायन हैं; तो अपने जीवन की यह कमाई मैं अपनी उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों आनन्द और शुभ कामनाओं के साथ समर्पित करता हूँ; क्योंकि अपनी मृत्यु के बाद मैं उन्हीं में तो जीवन का आनन्द भोगूंगा !

-'प्रभाकर'


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    अनुक्रम

  1. उग-उभरती पीढ़ियों के हाथों में
  2. यह क्या पढ़ रहे हैं आप?
  3. यह किसका सिनेमा है?
  4. मैं आँख फोड़कर चलूँ या आप बोतल न रखें?
  5. छोटी कैची की एक ही लपलपी में !
  6. यह सड़क बोलती है !
  7. धूप-बत्ती : बुझी, जली !
  8. सहो मत, तोड़ फेंको !
  9. मैं भी लड़ा, तुम भी लड़े, पर जीता कौन?
  10. जी, वे घर में नहीं हैं !
  11. झेंपो मत, रस लो !
  12. पाप के चार हथियार !
  13. जब मैं पंचायत में पहली बार सफल हुआ !
  14. मैं पशुओं में हूँ, पशु-जैसा ही हूँ पर पशु नहीं हूँ !
  15. जब हम सिर्फ एक इकन्नी बचाते हैं
  16. चिड़िया, भैंसा और बछिया
  17. पाँच सौ छह सौ क्या?
  18. बिड़ला-मन्दिर देखने चलोगे?
  19. छोटा-सा पानदान, नन्हा-सा ताला
  20. शरद् पूर्णिमा की खिलखिलाती रात में !
  21. गरम ख़त : ठण्डा जवाब !
  22. जब उन्होंने तालियाँ बजा दी !
  23. उस बेवकूफ़ ने जब मुझे दाद दी !
  24. रहो खाट पर सोय !
  25. जब मैंने नया पोस्टर पढ़ा !
  26. अजी, क्या रखा है इन बातों में !
  27. बेईमान का ईमान, हिंसक की अहिंसा और चोर का दान !
  28. सीता और मीरा !
  29. मेरे मित्र की खोटी अठन्नी !
  30. एक था पेड़ और एक था ठूंठ !
  31. लीजिए, आदमी बनिए !
  32. अजी, होना-हवाना क्या है?
  33. अधूरा कभी नहीं, पूरा और पूरी तरह !
  34. दुनिया दुखों का घर है !
  35. बल-बहादुरी : एक चिन्तन
  36. पुण्य पर्वत की उस पिकनिक में

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